पूर्व सेना प्रमुख जनरल के वी कृष्णा राव का आज दिल्ली कैंट के ब्रार चौक पर पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनका 30 जनवरी 2016 को नई दिल्ली के मिलिट्री अस्पताल में निधन हो गया था।
राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने उनके निधन पर अपने शोक संदेश में कहा है, पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल के वी कृष्णा राव के निधन का समाचार सुन कर वह शोक में हैं। देश और सेना के प्रति किए गए उनके कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा। माननीय रक्षा मंत्री श्री मनोहर पर्रिकर ने जनरल राव के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा है कि देश ने एक जाने-माने सैन्य नेता को खो दिया है। वह एक ऐसे दूरदृष्टि वाले सैन्य नेता थे, जिन्होंने कई पीढ़ियों के सैनिकों को प्रेरित किया और 1980 के शुरुआती दशक में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की शुरुआत की। 1971 के युद्ध और देश की एकता और अखंडता में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। सेना प्रमुख जनरल दलवीर सिंह ने जनरल के वी कृष्णा राव को माल्यार्पण कर उनके परिवार के प्रति शोक जताया। उन्होंने कहा कि जनरल के वी कृष्णा राव एक महान सैन्य नेता थे और जिन्होंने कई पीढ़ियों के सैनिकों को प्रेरित किया और आगे भी करते रहेंगे।
जनरल के वी कृष्णा राव का भारतीय सेना में चार दशक से भी लंबे समय का कैरियर था। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा, नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर और बलूचिस्तान में अपनी सेवाएं दीं। वर्ष 1947-48 के दौरान उन्होंने पाकिस्तान से हुए युद्ध में हिस्सा लिया। वह 1949-51 के दौरान राष्ट्रीय सैन्य अकादमी के संस्थापक अनुदेशक रहे। वर्ष 1969-70 के दौरान उन्होंने जम्मू क्षेत्र में इनफैंट्री डिवीजन की कमान संभाली और 1970-72 के दौरान नगालैंड और मणिपुर में विद्रोहियों के खिलाफ अभियानों का नेतृत्व किया। इस दौरान उनकी डिवीजन ने 1971 के भारत-पाकिस्तान में पूर्वी क्षेत्र में हिस्सा लिया। सिलहट इलाके पर कब्जे और पूर्वोत्तर बांग्लादेश को आजाद करने में उनका योगदान रहा।
उनके शव पर राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी और रक्षा मंत्री की ओर से माल्यार्पण किया गया। एयर फोर्स मार्शल अर्जन सिंह, पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह और अन्य पूर्व सेना प्रमुख ( जनरल वी.एन. शर्मा, जनरल एऩ सी विज, जनरल दीपक कपूर और जनरल विक्रम सिंह), नौसेना और वायु सेना के प्रतिनिधि, मणिपुर सरकार के प्रतिनिधि उनके अंतिम संस्कार के समय उपस्थित थे।
कर्नल आनंद, एसएम
पीआरओ (आर्मी)
डीएम- 608
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रविवार, 31 जनवरी 2016
पूर्व सेना प्रमुख जनरल के वी कृष्णा राव का पूरे सैनिक सम्मान का अंतिम संस्कार
मंगलवार, 26 जनवरी 2016
शुक्रवार, 15 जनवरी 2016
रक्षा मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय के पास भेजा प्रस्ताव
गणतंत्र दिवस के मौके पर केंद्र सरकार वन रैंक वन पेंशन (OROP) को लेकर बड़ा ऐलान कर सकती है. रक्षा मंत्रालय की ओर से ऐसे संकेत मिले हैं कि नए नियमों के साथ इसे जल्द अमल में लाया जा सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, OROP का ड्राफ्ट रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को दिखाया जा चुका है. उनकी ओर से हां होने के बाद इसे वित्त मंत्रालय के पास भेज दिया गया है.
पेंशन को लेकर हैं कई असमानताएं
बता दें कि OROP को लेकर आखिरी ऐलान होना अभी बाकी है. सरकार ने सितंबर 2015 में OROP की घोषणा करने के बाद नवंबर 2015 में इसे लेकर नोटिफिकेशन जारी किया था. हालांकि सभी रैंक में पेंशन को लेकर कुछ असमानताएं थीं जिन पर मंत्रालय लगातार काम कर रहा है.
सूत्रों के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय सभी रैंकों में OROP की टेबल पब्लिश कर उसे अनाउंस करने की योजना पर काम कर रहा है. इससे यह स्पष्ट होगा कि सेना, वायुसेना और नेवी में ऑफिसर ग्रेड और जवानों की पेंशन में क्या बदलाव हुआ है.
30 लाख पूर्व सैनिकों को मिलेगा लाभ
बताया जा रहा है कि इस योजना के तहत करीब 30 लाख पूर्व सैनिकों और विधवाओं को बढ़ी हुई पेंशन मिलेगी. इससे सरकारी खजाने पर हर साल करीह 8000 से 10000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा.
OROP को लेकर सरकार की ओर से उठाए जाने वाले कदमों का पूर्व सैनिक विरोध कर सकते हैं. पूर्व सैनिक सरकार के फैक्टर और फॉर्मूले का विरोध कर रहे हैं.
Keyword : modi Govt, OROP announcement, republic day, ministry of defence, finance authorities, Veteran protesters, one rank one pension
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/government-works-to-make-final-one-rank-one-pension-announcement-on-republic-day-1-850318.html
Col Ranbir Lamba
मंगलवार, 5 जनवरी 2016
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने प्रधानमंत्री से बात कर पठानकोट आतंकी हमले की निंदा की
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने श्री अशरफ गनी ने आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बातचीत की। उन्होंने पठानकोट में हुए आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की और हमले में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की। श्री गनी ने मजार-ए-शरीफ में आतंकी हमले के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी दी और भारत में भूकंप से हुए जानमाल के नुकसान पर अपना समर्थन व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री ने आतंकी हमले तथा भूकंप पर राष्ट्रपति गनी के समर्थन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने मजार-ए-शरीफ में आतंकी हमले को नकाम करने तथा भारतीय वाणिज्य दूतावास और दूतावास कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की बहादुरी और अदम्य साहस के लिए सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत हमेशा अफगानिस्तान की जनता के साथ रहेगा।
[PIB]
सोमवार, 4 जनवरी 2016
इंडियन साइंस कांग्रेस के 103वें सत्र में प्रधानमंत्री के उद्घाटन भाषण का मूल पाठ
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज मैसूर विश्वविद्यालय में 103वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में उद्घाटन भाषण दिया। इस साल की कांग्रेस का विषय ‘भारत में स्वदेशी विकास के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ है।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर 103वीं आईएससी पूर्ण कार्यवाही और टेक्नोलॉजी विज़न 2035 दस्तावेज भी जारी किया। उन्होंने वर्ष 2015-16 के लिए आईएससीए पुरस्कार भी प्रदान किए।
प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ निम्नलिखित हैः-
कर्नाटक के राज्यपाल श्री वजुभाई वाला
कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री सिद्धारमैया
मेरे मंत्रिमंडलीय सहयोगीगण, डॉ. हर्षवर्धन और श्री वाई.एस. चौधरी
भारत रत्न प्रोफेसर सी.एन.आर. राव
प्रोफेसर ए.के. सक्सेना
प्रोफेसर के.एस. रंगप्पा
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित महानुभावों और फील्ड मेडलिस्ट
विशिष्ट वैज्ञानिकों एवं प्रतिनिधियों,
भारत और विश्व के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अग्रणी महानुभावों के साथ वर्ष की शुरूआत करना बेहद सौभाग्य की बात है।
भारत के भविष्य के प्रति हमारे विश्वास की वजह आप पर हमारा भरोसा है।
मैसूर विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष में 103वीं साइंस कांग्रेस को संबोधित करने का अवसर पाना बेहद सम्मान और सौभाग्य की बात है।
भारत के कुछ महान नेताओं ने इसी प्रतिष्ठित संस्थान से विद्या प्राप्त की है।
महान दार्शनिक और देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन और भारत रत्न प्रोफेसर सी.एन.आर. राव उन्हीं में से हैं।
साइंस कांग्रेस और मैसूर विश्वविद्यालय का इतिहास करीब-करीब एक ही दौर में प्रारंभ हुआ।
वह समय भारत में नव जागरण का था। उसने केवल भारत में स्वाधीनता नहीं, बल्कि मानव प्रगति की भी मांग की।
वह सिर्फ स्वतंत्र भारत ही नहीं चाहता था, बल्कि एक ऐसा भारत चाहता था, जो अपने मानव संसाधनों, वैज्ञानिक क्षमताओं और औद्योगिक विकास की ताकत के बल पर स्वतंत्र रूप से खड़ा रह सके।
यह विश्वविद्यालय भारतीयों की महान पीढ़ियों के विज़न का साक्षी है।
अब, हमने भारत में सशक्तिकरण और अवसरों की एक अन्य क्रांति प्रारंभ की है।
इतना ही नहीं, हमने मानव कल्याण और आर्थिक विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक बार फिर से अपने वैज्ञानिकों और अन्वेषकों का रूख किया है।
विश्व ने ज्ञान के लिए मनुष्य की पड़ताल और अन्वेषण की प्रवृति की वजह से, लेकिन साथ ही, मानव चुनौतियों से निपटने के लिए प्रगति की है।
दिवंगत राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से ज्यादा किसी अन्य ने इस भावना को परिलक्षित नहीं किया।
उनका जीवन बेमिसाल वैज्ञानिक उपलब्धियों से भरपूर था और वे मानवता के प्रति असीम करूणा और चिंता का भाव रखते थे।
उनके लिए, विज्ञान का सर्वोच्च उद्देश्य कमजोर, सुविधाओं से वंचित लोगों तथा युवाओं के जीवन में बदलाव लाना था।
और, उनके जीनव का मिशन आत्मनिर्भर और आत्मविश्वास से भरपूर भारत था, जो मजबूत हो और अपने नागरिकों की सरपरस्ती करे।
इस कांग्रेस के लिए आपका विषय उनके विजन को उपयुक्त श्रद्धांजलि है।
और, प्रोफेसर राव और राष्ट्रपति कलाम जैसे राह दिखाने वालों और आप जैसे वैज्ञानिकों ने भारत को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के बहुत से क्षेत्रों में सबसे अग्रणी स्थान दिलाया है।
हमारी सफलता का दायरा छोटे से अणु के केन्द्र से लेकर अंतरिक्ष की विस्तीर्ण सीमा तक फैला है। हमने खाद्य और स्वास्थ्य सुरक्षा में वृद्धि की है और हमने दुनिया में अन्य लोगों में अच्छी जिंदगी का विश्वास जगाया है।
जब हम अपनी जनता की महत्वकांक्षाओं के स्तर में वृद्धि करते हैं, तो हमें अपने प्रयासों का स्तर भी बढ़ाना पड़ता है।
इसलिए, मेरे लिए सुशासन का आशय नीति बनाना और निर्णय लेना, पारदर्शिता और जवाबदेही मात्र नहीं है, बल्कि हमारे विकल्पों और रणनीतियों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को शामिल करना भी है।
हमारे डिजिटल नेटवर्क गुणवत्ता बढ़ा रहे हैं तथा जन सेवाओं और सामाजिक लाभ को गरीबों तक पहुंचा रहे हैं। इतना ही नहीं, प्रथम राष्ट्रीय अंतरिक्ष सम्मेलन में हमने शासन, विकास और संरक्षण के लगभग प्रत्येक पहलु को छूने वाले 170 अनुप्रयोगों की पहचान की।
हम स्टार्टअप इंडिया लांच करने जा रहे हैं, जो नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहन देगा। हम अकादमिक संस्थानों में टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेटर बना रहे हैं। मैंने सरकार में वैज्ञानिक विभागों और संस्थानों में वैज्ञानिक लेखा परीक्षा की रूपरेखा तैयार करने को कहा है।
यह सहयोगपूर्ण संघवाद की भावना के अनुरूप है, जो प्रत्येक क्षेत्र में केन्द्र राज्य संबंधों को आकार दे रही है, जो मैं केन्द्रीय और राज्य स्तरीय संस्थाओं और एजेंसियों के बीच व्यापक वैज्ञानिक सहयोग को प्रोत्साहन दे रहा हूं।
हम विज्ञान के लिए अपने संसाधनों का स्तर बढ़ाने की कोशिश करेंगे और उन्हें हमारी रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप लगाएंगे।
हम भारत में विज्ञान और अनुसंधान को सुगम बनाएंगे, विज्ञान प्रशासन में सुधार करेंगे और आपूर्ति का दायरा बढ़ाएंगे तथा भारत में विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार लाएंगे।
उसी समय, नवाचार सिर्फ हमारे विज्ञान का ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए। नवाचार वैज्ञानिक प्रक्रिया को भी अवश्य गति प्रदान करे। किफायती नवाचार और
क्राउडसोर्सिंग प्रभावी और कारगर वैज्ञानिक उद्यम के उदाहरण हैं।
और, दृष्टिकोण में नवाचार सिर्फ सरकार का ही दायित्व नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र और शैक्षणिक समुदाय की भी जिम्मेदारी है।
ऐसे विश्व में जहां संसाधनों की बाध्यताएं और प्रतिस्पर्धी दावे हैं, हमें अपनी प्राथमिकताओं को बुद्धिमानी से परिभाषित करना होगा। और, भारत के लिए यह खासतौर पर महत्वपूर्ण है, जहां कई और बड़े पैमाने पर चुनौतियां हैं – स्वास्थ्य और भूख से लेकर ऊर्जा और अर्थव्यवस्था तक।
माननीय प्रतिनिधियों,
आज मैं आप के साथ जिस विषय पर चर्चा करना चाहता हूं वह दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है और उसने पिछले साल प्रबलता से विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया- हमारी दुनिया के लिए ज्यादा समृद्ध भविष्य तथा हमारे ग्रह के लिए ज्यादा टिकाऊ भविष्य के मार्ग को परिभाषित करना।
वर्ष 2015 में विश्व ने दो ऐतिहासिक कदम उठाए।
पिछले सितंबर, संयुक्त राष्ट्र ने 2030 के लिए विकास के एजेंडे को स्वीकार किया। यह 2030 तक गरीबी के उन्मूलन और आर्थिक विकास को हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखता है, लेकिन साथ ही यह हमारे पर्यावरण और हमारे पर्यावासों पर समान रूप से बल देता है।
और, पिछले नवंबर पेरिस में विश्व ने एकजुट होकर हमारे ग्रह की धारा बदलने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया।
लेकिन, हमने कुछ और भी हासिल किया, जो इतना ही महत्वपूर्ण है।
हम जलवायु परिवर्तन के विचार विमर्श के केन्द्र में नवाचार और प्रौद्योगिकी को लाने में सफल रहे।
हमने तर्कसंगत रूप से यह संदेश दिया कि सिर्फ लक्ष्यों और अंकुश के बारे में बोलना ही काफी नहीं होगा। ऐसे समाधान ढूंढना अनिवार्य है, जो हमें स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य में सुगमता से ले जाने में मदद करे।
हमने पेरिस में यह भी कहा कि नवाचार सिर्फ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ही नहीं, बल्कि जलवायु न्याय के लिए भी महत्वपूर्ण है।
सभी के लिए स्वच्छ ऊर्जा को उपलब्ध, गम्य और किफायती बनाने के लिए हमें अनुसंधान और नवाचार करना होगा।
पेरिस में राष्ट्रपति होलांद, राष्ट्रपति ओबामा और मैंने एक नवाचार शिखर सम्मेलन के लिए विश्व के कई नेताओं को साथ जोड़ा।
हमने नवाचार और सरकारों के उत्तरदायित्व को निजी क्षेत्र की नवीन क्षमता के साथ जोड़ने वाली वैश्विक भागीदारी कायम करने के लिए राष्ट्रीय निवेश दोगुना करने का संकल्प लिया।
मैंने ऊर्जा के उत्पादन, वितरण और उपभोग करने के हमारे तरीकों में बदलाव लाने पर अगले दस वर्षों तक ध्यान केंद्रित करने के लिए 30-40 विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क तैयार करने का भी सुझाव दिया। हम जी-20 में भी इसका अनुसरण करेंगे।
हमें नवीकरणीय ऊर्जा को और ज्यादा किफायती, ज्यादा विश्वसनीय और ट्रांसमिशन ग्रिड्स के साथ जोड़ना सुगम बनाने के लिए नवाचार की आवश्यकता है।
भारत के लिए यह विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है कि हम 2022 तक 175 जीडब्ल्यू नवीकरणीय उत्पादन जोड़ने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
हमें आवश्यकत तौर पर कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन को स्वच्छ और ज्यादा प्रभावी बनाना होगा। साथ ही हमें महासागर की लहरों से लेकर भूतापीय ऊर्जा तक नवीकरणीय ऊर्जा के नए स्रोतों का उपयोग करना होगा।
ऐसे समय में, जब औद्योगिक युग को ईंधन प्रदान करने वाले ऊर्जा के स्रोतों ने हमारे ग्रह को संकट में डाल दिया है और विकासशील देशों को अब अरबों लोगों को समृद्ध बनाना है, तो ऐसे में विश्व को भविष्य की ऊर्जा के लिए सूर्य की ओर रुख करना होगा।
इसलिए, पेरिस में, भारत ने सौर ऊर्जा समृद्ध देशों के बीच भागीदारी कायम करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन प्रारम्भ किया है।
हमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकता मात्र स्वच्छ ऊर्जा को हमारे अस्तित्व का अभिन्न अंग बनाने के लिए ही नहीं है, बल्कि हमारे जीवन पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए भी है।
हमें कृषि को जलवायु के मुताबिक ढलने वाली (क्लाइमेट रिज़िल्यन्ट) बनाना होगा। हमें हमारे मौसम, जैव विविधता, हिमनदों और महासागरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उनसे सामंजस्य बनाने के तरीके को समझना होगा। हमें प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने की योग्यता को भी अवश्य मजबूत बनाना होगा।
माननीय प्रतिनिधियों,
हमें तेज रफ्तार से हो रहे शहरीकरण की उभरती चुनौतियों से भी हर हाल में निपटना होगा। धारणीय विश्व के लिए यह महत्वपूर्ण होगा।
मानव इतिहास में पहली बार, हम एक शहरी सदी में हैं। इस सदी के मध्य तक विश्व की दो-तिहायी आबादी शहरों में बसने लगेगी। 3.0 बिलियन से कुछ कम लोग शहरों में बसे मौजूदा 3.5 बिलियन लोगों के साथ आ जुड़ेंगे। इतना ही नहीं, इस वृद्धि का 90 प्रतिशत विकासशील देशों में होगा।
एशिया के कई शहरी क्लस्टरों की आबादी दुनिया के अन्य मझोले आकार के देशों की आबादी से ज्यादा हो जाएगी।
2050 तक 50 फीसदी से ज्यादा भारत शहरों में रह रहा होगा और 2025 तक वैश्विक शहरी आबादी का 10 फीसदी भारत से हो सकता है।
अध्ययन से पता चलता है कि लगभग 40 फीसदी वैश्विक शहरी आबादी अनौपचारिक आश्रय स्थलों या बस्तियों में रहती है, जहां उन्हें कई स्वास्थ्य और पोषण संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
आर्थिक वृद्धि, रोजगार के अवसरों और संपन्नता को गति शहरों से ही मिलती है। लेकिन शहरों से ही दो तिहाई वैश्विक ऊर्जा मांग निकलती है और नतीजतन 80 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। यही वजह है कि मैं स्मार्ट शहरों (स्मार्ट सिटी) पर इतना ज्यादा जोर दे रहा हूं।
सिर्फ शहरों को ही ज्यादा कुशल, सुरक्षित और सेवाओं की डिलिवरी के लिहाज से बेहतर बनाने की योजना नहीं है, बल्कि उनकी ऐसे टिकाऊ शहरों के विकास की भी योजना है जिनसे हमारी अर्थव्यवस्थाओं को गति मिले और जो स्वस्थ जीवन शैली के लिए स्वर्ग की तरह हों।
हमें अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहतर नीतियों की जरूरत है, लेकिन हम रचनात्मक समाधान उपलब्ध कराने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निर्भर होंगे।
हमें स्थानीय पारिस्थितिकी और विरासत के प्रति संवेदनशीलता के साथ शहरी योजना में सुधार के लिए बेहतर वैज्ञानिक उपकरण विकसित करने चाहिए, जिससे परिवहन की मांग में कमी आए, गतिशीलता में सुधार हो और भीड़-भाड़ में कमी आए।
हमारे अधिकांश शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण होना अभी बाकी है। हमें वैज्ञानिक सुधारों के साथ स्थानीय सामग्री का इस्तेमाल अधिकतम करना चाहिए; और इमारतों को ऊर्जा के लिहाज से ज्यादा कुशल बनाना चाहिए।
हमें ठोस कचरा प्रबंधन के लिए किफायती और व्यावहारिक समाधान तलाशने हैं; कचरे से निर्माण सामग्री और ऊर्जा बनाने; और दूषित जल के पुनर्चक्रीकरण पर भी ध्यान देना है।
शहरी कृषि और पारिस्थितिकी पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। और हमारे बच्चों को सांस लेने के लिए स्वच्छ शहरी हवा मिलनी चाहिए। साथ ही हमें ऐसे समाधानों की जरूरत है जो व्यापक और विज्ञान व नवाचार से जुड़े हुए हों।
हमें अपने शहरों को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति ज्यादा प्रतिरोधी और अपने घरों को ज्यादा लचीला बनाने के लिए आपके सहयोग की जरूरत है। इसका मतलब इमारतों को ज्यादा किफायती बनाना भी है।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
इस ग्रह का टिकाऊ भविष्य सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करेगा कि हम धरती पर क्या करते हैं, बल्कि इस पर भी निर्भर करेगा कि हम अपने समुद्रों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
हमारे ग्रह के 70 प्रतिशत हिस्से पर समुद्र हैं; और 40 फीसदी से ज्यादा आबादी और दुनिया के 60 फीसदी बड़े शहर समुद्र तट के 100 किलोमीटर के दायरे में आते हैं।
हम नए युग के मुहाने पर हैं, जहां समुद्र हमारी अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहद अहम हो जाएंगे। उनका टिकाऊ इस्तेमाल संपन्नता ला सकता है और हमें सिर्फ मछली पकड़ने के अलावा स्वच्छ ऊर्जा, नई दवाएं व खाद्य सुरक्षा भी दे सकता है।
यही वजह है कि मैं छोटे द्वीपीय राज्यों को बड़े समुद्री राज्यों के तौर पर उल्लेख करता हूं।
समुद्र भारत के भविष्य के लिए भी काफी अहम है, जहां 1,300 द्वीप, 7,500 किलोमीटर लंबा समुद्र तट और 24 लाख वर्ग किलोमीटर विशेष आर्थिक क्षेत्र आते हैं।
यही वजह है कि बीते साल हमने समुद्र या नीली अर्थव्यवस्था पर अपना ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। हम सामुद्रिक विज्ञान में अपने वैज्ञानिक प्रयासों के स्तर को बढ़ाएंगे।
हम समुद्र जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी के लिए एक उन्नत शोध केंद्र की स्थापना करेंगे और भारत व विदेश में एक तटीय व द्वीप शोध स्टेशनों का एक नेटवर्क भी स्थापित करेंगे।
हमने कई देशों के साथ सामुद्रिक विज्ञान और समुद्र अर्थव्यवस्था पर समझौते किए हैं। हम 2016 में नई दिल्ली में ‘ओसीन इकोनॉमी एंड पैसिफिक आइसलैंड कंट्रीज’ (समुद्री अर्थव्यवस्था और प्रशांत द्वीपीय देशों) पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करेंगे।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
समुद्रों की तरह नदियों की मानव इतिहास में एक अहम भूमिका रही है। सभ्यताएं नदियों के द्वारा ही पली-बढ़ी हैं। और नदियां हमारे भविष्य के लिए भी अहम रहेंगी।
इसलिए नदियों का पुनरुद्धार मेरी अपने समाज के लिए एक स्वच्छ और सेहतमंद भविष्य, हमारे लोगों के लिए आर्थिक अवसरों और हमारी धरोहर के नवीकरण के लिए प्रतिबद्धता का अहम हिस्सा है।
हमें अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए नियमन, नीति, निवेशों और प्रबंधन की जरूरत है। लेकिन ऐसा सिर्फ अपनी नदियों को स्वच्छ बनाकर ही नहीं, बल्कि उन्हें भविष्य में भी स्वस्थ बनाए रखकर ही संभव होगा। इसके लिए हमें अपने प्रयासों के साथ तकनीक, इंजीनियरिंग और नवाचार को जोड़ना होगा।
इसके लिए हमें शहरीकरण, कृषि, औद्योगीकरण और भूमिगत जल के इस्तेमाल और नदियों पर प्रदूषण के प्रभाव की वैज्ञानिक समझ की जरूरत है।
नदी प्रकृति की आत्मा है। उनका नवीकरण टिकाऊ पर्यावरण की दिशा में एक बड़ा प्रयास हो सकता है।
भारत में हम मानवता को प्रकृति के हिस्से के तौर पर देखते हैं, न उससे अलग या उससे ज्यादा और देवता प्रकृति में विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं।
इस प्रकार संरक्षण प्राकृतिक रूप से हमारी संस्कृति और परंपरा व भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता से गहराई से जुड़ा हुआ है।
भारत में पारिस्थितिकी ज्ञान की एक संपन्न धरोहर है। हमारे पास वैज्ञानिक संस्थान और मानव संसाधन हैं, जिनसे प्रकृति के संरक्षण पर ठोस राष्ट्रीय योजना को गति दी जा सकती है। यह वैज्ञानिक अध्ययन और प्रक्रियाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।
सम्मानित प्रतिनिधियों,
यदि हम मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य चाहते हैं तो हमें पारंपरिक ज्ञान को पूरी तरह इस्तेमाल करना चाहिए।
दुनिया भर में समाजों ने युगों से मिले ज्ञान के दम पर अपनी संपन्नता को बढ़ाया है। और उनके पास हमारी कई समस्याओं के आर्थिक, कुशल और पर्यावरण के अनुकूल समाधानों के राज हैं। लेकिन आज वे हमारी भूमंडलीकृत दुनिया में समाप्त होने के कगार पर हैं।
पारंपरिक ज्ञान की तरह विज्ञान भी मानव अनुभवों और प्रकृति की खोज के माध्यम से विज्ञान भी विकसित हुआ है। इसलिए हमें उस विज्ञान को मान्यता देनी चाहिए, जो दुनिया के बारे में अनुभवजन्य ज्ञान के रूप में तैयार नहीं होता है।
हमें पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच की दूरी को पाटना चाहिए, जिससे हम अपनी चुनौतियों के लिए स्थानीय और ज्यादा टिकाऊ समाधान तैयार कर सकते हैं।
इसलिए कृषि में जैसे हम अपने खेतों को ज्यादा उपजाऊ बनाते हैं, उसी प्रकार अपने पानी के इस्तेमाल में कमी या अपनी कृषि उपज में पोषक तत्वों को बढ़ाने पर काम करना चाहिए।
हमें पारंपरिक तकनीकों, स्थानीय पद्धतियों और जैविक कृषि को एकीकृत करना चाहिए, जिससे हमारी कृषि में कम से कम संसाधन इस्तेमाल हों और वह ज्यादा लचीली हो।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आधुनिक दवाओं ने हेल्थकेयर को बदल दिया है। लेकिन हमें बेहतर जीवनशैली और उपचार के तरीकों में बदलाव के लिए वैज्ञानिक तकनीकों और तरीकों को पारंपरिक दवाओं और योग जैसी प्रक्रियाओं का भी इस्तेमाल करना चाहिए।
आरके/एस/ एमपी/केजे-27
तुमाकुरू में एचएएल की नई हेलीकाप्टर फैक्टरी के शिलान्यास समारोह में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ
मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और विशाल संख्या में पधारे मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
आज वैसे मेरा प्रधानमंत्री बनने के बाद Tumakuru जिले में ये दूसरी बार आना हुआ है। आज आपको लगता होगा कि एक शिलान्यास हुआ है, लोगों को लगता होगा कि यहां कोई फैक्टरी लगने वाली है, लेकिन ये सिर्फ सामान्य फैक्टरी लगने वाली नहीं है। इस धरती पर वो काम होने वाला है जो हिन्दुस्तान की रक्षा करने के लिए काम आने वाला है। देखते ही देखते ये छोटा सा गांव, ये Tumakuru जिला विश्व के नक्शे पर अपनी पहचान बनाने वाला है। सामान्य कोई फैक्टरी बनती तो न देश का ध्यान जाता, न दुनिया का ध्यान जाता लेकिन यहां पर वो काम होने वाला है जिसकी तरफ दुनिया की नज़र जाना बहुत स्वाभाविक है।
आज एक और भी सुअवसर है। Hindustan Aeronautics Limited, HAL के नाम से परिचित है, वह अपनी यात्रा की 75वीं सालगिरह मना रहा है। HAL की 75 साल की यात्रा अनेक विविधताओं से भरी हुई है। आज उसके कई पूर्व chairmen भी इस अवसर की शोभा बढ़ाने के लिए आए हैं। पिछले 75 साल में HAL के लिए जिन-जिन लोगों ने काम किया, छोटी-मोटी जिम्मेवारी संभाली, चाहे worker रहे हो या chairmen रहे हो, मैं आज इस 75 वर्ष की यात्रा के समय, इस यात्रा के उन सभी साथियों का स्मरण करता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं।
एक समय था, हमारे देश में खाने के लिए हमें अनाज बाहर से लाना पड़ता था। विदेशों से अनाज मंगवा कर के हमें देशवासियों का पेट भरना पड़ता था लेकिन जब लाल बहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का मंत्र दिया, देश के किसानों को देश का पेट भरने के लिए प्रेरित किया, हिन्दुस्तान के किसानों ने पिछले 50 साल में जो मेहनत की, नए-नए आविष्कार किए, कृषि क्षेत्र में नई-नई योजनाएं लाए, उसका परिणाम यह हुआ कि आज देश अन्न के विषय में स्वावलंबी बना है। हमारे किसानों ने ‘जय किसान’ मंत्र को चरितार्थ करके दिखाया, साकार करके दिखाया और अन्न के क्षेत्र में देश को स्वावलंबी बना दिया। लेकिन दूसरा काम ‘जय जवान’, जिसमें हमारा देश रक्षा के विषय में आत्मनिर्भर बने, स्वावलंबी बने, भारत को अपनी रक्षा के लिए दुनिया में किसी पर भी आश्रित न रहना पड़े, ये काम अभी देश में होना बाकी है।
आज भी हमारे देश की सीमाओं की रक्षा के लिए, हमारे देश के नागरिकों की रक्षा के लिए हमारे जवान जान की बाजी लगाने के लिए तैयार है, बलिदान करने के लिए तैयार है लेकिन हमारे जवानों को लड़ने के लिए जो शस्त्र चाहिए, जो साधन चाहिए, कठिन में कठिन जगह पर जाने के लिए व्यवस्थाएं चाहिए, इसमें अभी हमें बहुत बड़ी यात्रा पूरी करना बाकी है। भारत की सेना दुनिया की किसी भी सेना से कमजोर नहीं होनी चाहिए। भारत की सेना के पास दुनिया के किसी भी देश से कम ताकतवर शस्त्रार्थ नहीं होने चाहिए।
आज देश की सेना के लिए जिन शस्त्रों की जरूरत पड़ती है, हमें विदेशों से लाने पड़ते हैं। अरबों-खरबों रुपया विदेशों में चला जाता है। बाहर से जो हमें शस्त्र मिलते हैं वो latest से थोड़े कम ताकतवर मिलते हैं। एक तरफ रुपए जाते हैं, लेकिन वहां पर जो चीज 2005 में चलती होगी, 2010 में चलती होगी वो हमें 2015 में देते हैं। 2015 की बराबरी की चाहिए, तो बोलते हैं 2020 में मिलेगी और इसलिए अगर विश्व के अंदर भारत को अपनी सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है तो भारत को अपनी आवश्यकता के अनुसार, अपनी सुरक्षा के लिए अपने शस्त्रार्थ खुद बनाने पड़ेंगे। और इसलिए हमारी सरकार ने defence manufacturing, शस्त्रार्थों का भारत में ही निर्माण, भारत के इंजीनियरों के द्वारा, भारत के वैज्ञानिकों के द्वारा, आधुनिकतम संसदन वाले शस्त्रार्थ, उसे बनाने की ओर बल देना प्रारंभ किया है।
पहले हम दुनिया के देशों से शस्त्र लेते थे, आज भी लेने पड़ेंगे जब तक कि हमारा अपना उत्पादन शुरू न हो। लेकिन हम आजकल दुनिया के देशों के साथ जब शस्त्र खरीदने का समझौता करते हैं तो हम कहते हैं इतने तो हम आप जो बना रहे हो वो ले लेंगे लेकिन बाकी जो order है वो आपको भारत में ही बनाना पड़ेगा, वो ‘मेक इन इंडिया’ होना चाहिए तब हम लेंगे। और इसलिए मेरे भाइयों-बहनों, आपके छोटे से इस गांव के किनारे पर, Tumakuru जैसे जिले में ये जो हेलीकॉप्टर बनाने का प्रोजेक्ट लग रहा है, ये हेलीकॉप्टर मुख्य रूप से सेना के काम आने वाला है। दुर्गम क्षेत्रों में जहां हमारी सेना तैनात होगी, अगर कभी कोई हमारा जवान बीमार हो गया और उस कठिन जगह पर दवाई पहुंचानी है तो यहां जो हेलीकॉटर बनेगा वो दवाई पहुंचाने का काम करेगा।
एक प्रकार से रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आज 2016 के जनवरी के प्रथम सप्ताह में एक नवतर प्रयास का आज प्रारंभ हो रहा है। एक हिसाब से 2016 साल को एक नए तरीके से मनाने का ये अवसर बन गया है। भारत को विशेषकर के कर्नाटक को और उसमें से विशेषकर Tumakuru जिले को ये 2016 की भारत सरकार की अनमोल भेंट है। काम भी इतनी तेजी से करना है कि 2018 में यहां से पहला हेलीकॉप्टर उड़ना चाहिए। संपूर्ण रूप से भारतीय तरीके से बना हुआ हेलीकॉप्टर इस धरती से 2018 में उड़ने की हम अपेक्षा करते हैं।
और एक सपना है कि पहला हेलीकॉप्टर बने, उसके 15 साल के भीतर-भीतर 600 हेलीकॉप्टर यहां बनकर के सेना के पास पहुंचने चाहिए और सरकार के उपयोग में आने चाहिए, देश के काम आने चाहिए, इतनी बड़ी मात्रा में काम खड़ा करना है। और मुझे विश्वास है कि HAL की 75 साल की यात्रा, उनके पास बहुत ही उत्तम प्रकार का सक्षम मानव बल और देश के सपनों के साथ कदम से कदम मिलाकर के चलने की उनकी इच्छा, ये जो सपना है कि 15 साल में 600 ऐसे हेलीकॉप्टर बना देना, मुझे विश्वास है वो पूरा करके देंगे। इस प्रोजेक्ट के कारण करीब 5,000 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश इस धरती पर होने वाला है। Tumakuru जिले की ये सबसे ज्यादा पूंजी वाली फैक्टरी बनने वाली है। इस प्रोजेक्ट के कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करीब 4,000 परिवारों को किसी न किसी को यहां पर रोजगार मिलने वाला है।
आज अगर किसी किसान के परिवार में तीन संतान हो और जाकर के किसान को कहे कि बेटों के लिए आगे की क्या योजना है? कितनी ही जमीन का मालिक क्यों न हो किसान, सिंचाई की अच्छी से अच्छी सुविधा क्यों न हो उसके पास, जमीन भी अच्छी से अच्छी फसल देने वाली क्यों न हो, लेकिन जब किसान को पूछते हैं कि आपने बेटों के लिए क्या सोचा है तो अच्छे से अच्छा किसान, अच्छी से अच्छी जमीन वाला किसान, अच्छे से अच्छे पानी की सुविधा वाला किसान तुरंत जवाब देता है कि एक बेटे को तो किसानी में लगाऊंगा लेकिन दो बेटों को शहर में कहीं कारखाने में रोजी-रोटी कमाने के लिए भेज दूंगा। और इसलिए हर किसान अपने परिवार का दो-तिहाई हिस्सा किसानी से बाहर निकालकर के कोई और काम-धाम रोजगार industry में जाना चाहता है। अगर किसान की भी मदद करनी है, किसान की भावी पीढ़ी की मदद करनी है तो उद्योग लगाए बिना किसान के बेटे को रोजगार मिलने की संभावना नहीं होगी।
हमारे संविधान के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर इस बात का लगातार आग्रह करते थे कि भारत में जल्द से जल्द औद्योगीकरण होना चाहिए, industrialization होना चाहिए और वो कहते थे कि दलित के पास जमीन नहीं है, दलित क्या करेगा? अगर उद्योग लगेंगे तभी तो दलित के बेटे को कुछ काम मिलेगा। और इसलिए बाबा साहेब अम्बेडकर भारत के आर्थिक विकास के लिए और भारत के सामाजिक ताने-बाने को ताकत देने के लिए औद्योगीकरण के पक्षकार रहे थे। एक प्रकार से ये हेलीकॉप्टर निर्माण का कार्य राष्ट्र रक्षा का भी काम है लेकिन किसान परिवारों को रोजगार देने का भी काम है। ये प्रोजेक्ट भारत को सशक्त बनाने के लिए भी है और ये प्रोजेक्ट बाबा साहेब अम्बेडकर के सपनों को पूरा करने के लिए भी है। मैं, कर्नाटक सरकार का आगे भी सहयोग मिलता रहेगा, भारत सरकार का संपूर्ण सहयोग रहेगा और HAL के मित्रों ने जो बीड़ा उठाया है कि 2018 में पहला हेलीकॉप्टर यहां से उड़ाएंगे, मेरी तरफ से उनको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
जब मेरा कर्नाटक का प्रवास बन रहा था तो कुछ दिन पहले Tumakuru जिले में मैं आ चुका था तो हमारे व्यवस्थापकों ने यही विचार रखा था कि यहां आएंगे, 15 मिनट शिलान्यास वगैरह करेंगे और दो-पांच मिनट कुछ कहना है तो कहकर के फिर निकल जाएंगे लेकिन मैंने कभी सोचा नहीं था कि ये धूप में भी मैं लाखों लोगों को मेरे सामने देख रहा हूं। जहां मेरी नज़र पहुंचे, लोग ही लोग नज़र आ रहे हैं। मैं आपके इस प्यार के लिए आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। फिर एक बार आप सब को नमस्कार।
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अतुल कुमार तिवारी/ अमित कुमार/ मनीषा/-28
[PIB]
रविवार, 3 जनवरी 2016
एक रणबांकुरे की पुकार
हुआ वो ही जिसका पहले से था अंदेशा हमें |
इतिहास गवाह है जब-जब ये नवाब साथ बैठकर खाना खाते है,
जवान हमारे लहू बहाकर इनकी कीमत चुकाते है|
दिल्ली की इन हरकतों से नित्य कोई सैनिक परिवार रोता है,
वरना गीदड़ की कहा मजाल, जो शेर की मांद पर आकर बोलता है|
सेना मर-मर पाती है, दिल्ली सब खो देती है,
अमर शहीदों के खुनों को कालिख से धो देती है|
मरा नहीं है वो कमांडो कट गया, उसका निज मस्तक है,
पृथ्वीराज के सिंहासन पर ये गौरी की दस्तक है|
दिल्ली की कायरता देख खून हमारा ख़ौलता है ,
वरना गीदड़ की कहाँ मजाल जो शेर की मांद पर आकर बोलता है||
छोड़ो ये कायरता अब हरावल दस्ते को आगे जाने दो ,
लाहौरी कुत्तो का शीश काटकर लाल किले पर लटकाने दो|
नापाक इरादों वालों इन भेड़ियों का खून हमें पी लेने दो,
26/11 वाले हमलों का जख्म हमें अब थोडा सा सी लेने दो |
कसम भारती की, हम पर जो हाथ उठे वो हाथ तोड़ दो,
इन जाहिलो के बदन के सारे के सारे छेद फोड़ दो|
लेकिन देखो मेरे देश में कैसे वर्दी में बेड़ी पड़ी हुई ,
भारत माता देखो खड़ी सामने जंजीरों में जड़ी हुई|
तभी आंतकी आकर मेरी वायुसेना को तोलता है,
वर्ना गीदड़ की कहा मजाल जो शेर की मांद पर आकर बोलता है||
हद से ज्यादा अहिंसा भी कायरता कहलाती है,
तभी तो आंतकी अड्डों को इतनी हिम्मत आती है|
ना देकर बिरयानी उस जाहिल को, वक़्त से टांग दिया होता,
दूसरा कसाब पैदा करने की हिम्मत फिर पाकिस्तान नहीँ करता |
अब भी मौका है दिल्ली इन भूलो को सुधारों तुम,
इन अड्डों पर चढ़ जाने का आदेश सेना को दे डालो तुम|
विश्व मंडल पर कोहराम मचे तो मच जाने दो,
छोड़ो भेजना सफ़ेद कबूतर इस बार बाज को जानो दो|
इस गीदड़ को मत भगाओ, इसकी चिंता छोड़ो तुम,
शेर के इस पिंजरे का दरवाजा इक बार खोलो तुम|
बस इक अकेले मुझे भेज दो मैं कसम रणचंडी की खाऊंगा ,
खुद अपने हाथों से मैँ लाहौर के इक-इक इंच में तिरंगा फहराऊँगा||
भारतीय वायु सेना
7665898911
शनिवार, 2 जनवरी 2016
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एवं नौसेना अकादमी परीक्षा (II), 2015 - लिखित परीक्षा के परिणाम की घोषणा के संबंध में
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा 27 सितम्बर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एवं नौसेना अकादमी परीक्षा (II), 2015 के लिखित भाग के परिणाम के आधार पर 2 जुलाई, 2016 से आरंभ होने वाले राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सेना, नौसेना तथा वायु सेना स्कंधों के 136वें पाठयक्रम तथा भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनएसी) के 98वें पाठयक्रम में प्रवेश हेतु निम्नलिखित अनुक्रमांक वाले उम्मीदवारों ने रक्षा मंत्रालय के सेवा चयन बोर्ड द्वारा साक्षात्कार के लिए अर्हता प्राप्त कर ली है।
2. इस सूची में जिन उम्मीदवारों के अनुक्रमांक दर्शाए गए हैं उन सभी उम्मीदवारों की उम्मीदवारी अनंतिम है। परीक्षा में उम्मीदवारों के प्रवेश की शर्तों के अनुसार “उन्हें अपनी आयु तथा शैक्षणिक योग्यता के संबंध में अपने मूल प्रमाण-पत्र सेवा चयन बोर्ड द्वारा साक्षात्कार के समय संबंधित सेवा चयन बोर्ड (एसएसबी) के समक्ष प्रस्तुत करने होंगे।” उम्मीदवार अपने मूल प्रमाण-पत्र संघ लोक सेवा आयोग को कदापि न भेजें। किसी अन्य प्रकार की जानकारी के लिए उम्मीदवार किसी भी कार्य दिवस में पूर्वाह्न 10.00 बजे से सायं 5.00 बजे के बीच आयोग के गेट ‘सी’ के पास सुविधा काउन्टर से स्वयं आकर या दूरभाष संख्या 011-23385271/011-23381125/011-23098543 पर संपर्क कर सकते हैं। परिणाम, संघ लोक सेवा आयोग की वेबसाइट http://www.upsc.gov.in पर भी उपलब्ध हैं।
3. उम्मीदवारों के अंक-पत्रक, अंतिम परिणाम के प्रकाशित होने की तारीख से पंद्रह (15) दिनों के भीतर (एसएसबी साक्षात्कारों के समाप्त होने के बाद) आयोग की वेबसाइट पर प्रदर्शित कर दिए जाएंगे और तीस (30) दिनों की अवधि के लिए वेबसाइट पर उपलब्ध रहेंगे।
[PIB]
शुक्रवार, 1 जनवरी 2016
पार्लियामेंट की कैंटीन में अब महंगा हुआ खाना, तीन गुना बढ़ेंगे दाम
Last Updated: Friday, January 1, 2016 - 08:33
नई दिल्ली : संसद की कैंटीन में मिलने वाले व्यंजनों की कीमतें आज से बढ़ जाएंगी। कैंटीन में भारी सब्सिडी के साथ खाने की चीजें मिलने को लेकर होने वाले विवाद के मद्देनजर कीमतों में बढोत्तरी की जा रही है।
अब तक 18 रुपए में मिलने वाली शाकाहारी थाली की कीमत बढाकर अब 30 रुपए कर दी गयी है जबकि 33 रुपए में मिलने वाली मांसाहारी थाली अब 60 रुपए में मिलेगी। पहले 61 रुपए में मिलने वाला थ्री-कोर्स मील अब 90 रुपए में जबकि 29 रुपए में मिलने वाली चिकन करी अब 40 रुपए में मिलेगी।
रोटी और चाय जैसी कुछ चीजों की कीमतों में बदलाव नहीं दिखेगा क्योंकि वे मौजूदा कीमतों के करीब हैं। व्यंजनों की संख्या भी घटा दी गई है। जहां पहले 125 से 130 व्यंजन रोज पकाए जाते थे अब प्रतिदिन 25 व्यंजन कर दिए गए हैं। फिलहाल कई तरह की रोटी, पुलाव, सादा चावल, खिचड़ी, दही चावल और बिरयानी बनाए जाते हैं। साथ ही, मानव बल पर बोझ घटाने के लिए चाय और कॉफी बनाने वाली मशीनें लगाई जाएंगी। लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कीमतों में बदलाव का आदेश दिया था।
लोकसभा सचिवालय ने कहा कि कीमतों में बदलाव छह साल बाद हो रहा है और समय समय पर कीमतों की समीक्षा की जाएगी। खुले बाजार में बेहिसाब मूल्यवृद्धि के बावजूद संसद कैंटीन में सब्सिडी के साथ परोसी जाने वाली भोजन सामग्रियों को लेकर समय समय पर विवाद होता रहा है जिसे देखते हुए कीमतों में वृद्धि करने का फैसला लिया गया।
लोकसभा सचिवालय ने एक बयान में कहा, ‘संसद की कैंटीन में भोजन सामग्रियों की कीमतें समय समय पर मीडिया में चर्चा का विषय रही है। इसे देखते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद की खाद्य समिति को इस पर ध्यान देने के लिए कहा था।’ बयान के अनुसार, ‘समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद लोकसभाध्यक्ष ने कई फैसले लिए जिनमें से यह फैसला सबसे महत्वपूर्ण है कि संसद की कैंटीन अब ‘गैर मुनाफा, गैर नुकसान’ के आधार पर काम करेगी।’ बयान के अनुसार, ‘कीमतों में वृद्धि सांसदों, लोकसभा एवं राज्यसभा के अधिकारियों, मीडिया कर्मियों, सुरक्षाकर्मियों और साथ ही आगंतुकों के लिए लागू होंगी।’
भाषा
First Published: Friday, January 1, 2016 - 08:33