पीटीआई-भाषा संवाददाता 20:17 HRS IST
मथुरा, 20 सितंबर (भाषा) गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज यहां कहा कि सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से भारत विश्व का सबसे समृद्घ देश है और देर भले ही हो जाए, लेकिन एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब भारत पुन: विश्वगुरू बनेगा।
राजनाथ ने कहा, ‘हम महाबलि नहीं बनना चाहते। विश्वगुरू बनना चाहते हैं, जैसे कि पहले थे।’ उन्होंने तर्क दिया, ‘महाबलि के पास खड़े होने में भी दूसरा डरेगा, किंतु गुरू सानिध्य पाकर उनसे प्रेरित होगा, आनंदित होगा। इसलिए भारत एक बार फिर विश्व गुरू बनेगा। आर्थिक शक्ति बनेगा।’ राजनाथ वृन्दावन में स्वामी हरिदास स्मृति संगीत एवं नृत्य समारोह का उद्घाटन करने के लिए आए थे।
यह पहला मौका था जब संगीत समारोह का उद्घाटन उसके चहेते श्रोताओं के बजाय कुछ विशेष लोगों के मध्य किया गया। इसके लिए मुख्य अतिथि के रूप में पधारे गृहमंत्री ने बताया कि उन्हें सोमवार तड़के दौरे पर जाना है, इसलिए उन्हें शाम की अपेक्षा दिन के समय आना पड़ा। उन्होंने कहा कि स्वामी हरिदास ने संगीत की विधा के माध्यम से ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दीं कि राधा और कृष्ण का ब्रज में प्रकट होना ही पड़ा।
उन्होंने कहा, ‘संगीत मनुष्यों के बीच की दूरियों को कम करता है। हमें सभी संकीर्णताओं से ऊपर ले जाता है। संगीत कभी भी शब्दों का मुहताज नहीं होता। वह तो मन के भावों से प्रस्फुटित होता है। उसी की महिमा से भगवान को प्रकट होना पड़ा।’ उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति बहुत समृद्घ है। यह एक बार फिर भारत को विश्वगुरू की पदवी तक ले जाएगी। यह भारत के ही रिषि-मुनि थे जिन्होंने ‘वसुधव कुटुंबकम’ का संदेश दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक केंद्र है और अध्यात्म आम इबादत से कहीं ऊपर की सोच का विषय है।
उन्होंने श्रोताओं के स्थान पर उपस्थित वृन्दावन के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएण्टल फिलासफी’ के छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत भारत में ही है। स्वामी श्रीधराचार्य तथा बोधायन आदि भारतीय गणितज्ञों ने पाइथागोरस की प्रमेय जैसे सूत्रों से भारत को सदियों पहले परिचित करा दिया था।
राजनाथ ने कहा, ‘हम महाबलि नहीं बनना चाहते। विश्वगुरू बनना चाहते हैं, जैसे कि पहले थे।’ उन्होंने तर्क दिया, ‘महाबलि के पास खड़े होने में भी दूसरा डरेगा, किंतु गुरू सानिध्य पाकर उनसे प्रेरित होगा, आनंदित होगा। इसलिए भारत एक बार फिर विश्व गुरू बनेगा। आर्थिक शक्ति बनेगा।’ राजनाथ वृन्दावन में स्वामी हरिदास स्मृति संगीत एवं नृत्य समारोह का उद्घाटन करने के लिए आए थे।
यह पहला मौका था जब संगीत समारोह का उद्घाटन उसके चहेते श्रोताओं के बजाय कुछ विशेष लोगों के मध्य किया गया। इसके लिए मुख्य अतिथि के रूप में पधारे गृहमंत्री ने बताया कि उन्हें सोमवार तड़के दौरे पर जाना है, इसलिए उन्हें शाम की अपेक्षा दिन के समय आना पड़ा। उन्होंने कहा कि स्वामी हरिदास ने संगीत की विधा के माध्यम से ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दीं कि राधा और कृष्ण का ब्रज में प्रकट होना ही पड़ा।
उन्होंने कहा, ‘संगीत मनुष्यों के बीच की दूरियों को कम करता है। हमें सभी संकीर्णताओं से ऊपर ले जाता है। संगीत कभी भी शब्दों का मुहताज नहीं होता। वह तो मन के भावों से प्रस्फुटित होता है। उसी की महिमा से भगवान को प्रकट होना पड़ा।’ उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति बहुत समृद्घ है। यह एक बार फिर भारत को विश्वगुरू की पदवी तक ले जाएगी। यह भारत के ही रिषि-मुनि थे जिन्होंने ‘वसुधव कुटुंबकम’ का संदेश दिया। यह दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक केंद्र है और अध्यात्म आम इबादत से कहीं ऊपर की सोच का विषय है।
उन्होंने श्रोताओं के स्थान पर उपस्थित वृन्दावन के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएण्टल फिलासफी’ के छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत भारत में ही है। स्वामी श्रीधराचार्य तथा बोधायन आदि भारतीय गणितज्ञों ने पाइथागोरस की प्रमेय जैसे सूत्रों से भारत को सदियों पहले परिचित करा दिया था।
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