इस्लामिक स्टेट के बढ़ते खतरे और पेरिस में हुए हमले के बीच रूस और भारत के सैनिकों ने आतंकवाद से लड़ने की संयुक्त तैयारियों को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाया। बीकानेर के महाजन फायरिंग रेंज में हुए इस युद्धाभ्यास में दोनों देशों के सैनिकों ने अपने अनुभवों और क्षमता का गगनभेदी प्रदर्शन किया।
करीब दो हफ्ते तक चले इस संयुक्त युद्धाभ्यास में भविष्य की चुनौतियों से लड़ने की रणनीति पर कदम से कदम मिलाकर काम किया। भारतीय सैनिकों को इस अभ्यास के दौरान रूस के उस बेमिसाल रणकौशल को सीखने-समझने का मौका मिला जो वो आतंकवाद के खात्मे के लिए सीरिया में दिखा रहे हैं।
“भारत और रूस की सेना का संयुक्त ऑपरेशन इंद्र जो 8 नवंबर को शुरु हुआ था 19 नवंबर को समाप्त हुआ। इस एक्सरसाइज में भारत और रूस के सैनिकों ने एक दूसरे की रणनीति, एक दूसरे के युद्ध कौशल,एक दूसरे के हथियार, साजो सामान को जाना, समझा। इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच आपसी समझ और बढ़ी। इन्होंने संयुक्त ऑपरेशन किए। संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देशों के तहत इस तरह का अभ्य़ास किया जाता है। खास बात ये है कि भविष्य में दोनों सेनाओं को साथ मिलकर किसी अभियान में काम करना पड़ेगा तो सफलतापूर्वक वो ऐसा कर सकेंगे। साथ ही दोनों ने एक दूसरे की संस्कृति को भी जाना। इसी दौरान दिवाली का त्योहार भी पड़ा। इसे रूस सैनिकों ने भी पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया। भारतीय सैनिकों के लिए रूसी सैनिकों ने एक विशेष कार्यक्रम रखा नृत्य और संगीत का जिसे भारतीय सैनिकों ने बहुत सराहा। साथ ही साथ रूसी सैनिकों ने योगाभ्यास भी किया। इस तरह करीब दो हफ्ते साथ रहने के दौरान व्यावसायिक ट्रेनिंग के साथ ही एक दूसरे के सांस्कृतिक गतिविधियों को जानने समझने का मौका भी दोनों देशों के सैनिकों को मिला। इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों ने एक दूसरे के हथियारों का जाना-समझा और उसका इस्तेमाल भी किया। दोनों सेनाओं ने इस बेहतरीन तजुर्बे को प्राप्त किया।“
वैसे यहा पहला मौका नहीं जब दोनों देशों के सैनिकों ने इस तरह के युद्धाभ्यास को अंजाम दिया हो। दोनों मित्र देशों के बीच इसकी शुरूआत 2005 में हुई थी। पहला अभ्यास आगरा में हुआ था। दोनों देशों की सेनाओं के बीच इस तरह का युद्धाभ्यास तीन बार रूस में भी हो चुका है। बीकानेर में संपन्न हुआ सातवां युद्धाभ्यास इसलिए ज्यादा चर्चे में रहा क्योंकि इसका आयोजन आतंकवाद के बढ़ते खतरे के दौरान हुआ और इसी पर केंद्रित रहा। आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए इस अभ्यास में दोनों सेनाओं ने संयुक्त योजना, घेराव, खोज अभियान,संयुक्त रणनीति,ड्रिल्स सहित कई और अभियानों में हिस्सा लिया। इस युद्धाभ्यास में महिला सैनिकों ने भी बढ़-चढ़कर अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। इस अभ्यास को बेहद जरूरी बताते हुए भारतीय थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो और भारतीय सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहे प्रभाष कुमार मिश्रा कहते हैं,
“इस तरह का युद्धाभ्यास भारत के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि भारत के पास मौजूद करीब 70 फीसदी हथियार रूस में निर्मित है। हमारे बेड़े में मौजूद 60 फीसदी एयरक्राफ्ट रूस के बने हैं। हथियार की एक बहुत बड़ी मात्रा रूस निर्मित है। इसके साथ ही एके-47 राइफल के निर्माण में भी हम रूस की कंपनी के साथ भागीदारी सुनिश्चित करने वाले हैं। इस लिहाज से रूस और भारतीय सैनिकों के बीच हुआ यह युद्धाभ्यास बेहद अहम है। पाकिस्तान की सीमा पर स्थित बीकानेर,बाड़मेर और जैसलमेर जैसे मरूस्थली इलाकों में युद्धाभ्यास के दौरान कई चीजें सीखने को मिलती हैं। इसमें एक-दूसरे से हथिय़ारों के इस्तेमाल के साथ-साथ सैनिकों की तैनाती के गुर भी सीखे जाते हैं। इससे सैनिकों की तकनीकी क्षमता भी विकसित होती है। पेरिस में हुए हमले और इस्लामिक स्टेट के मंडराते खतरे के बीच यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि इसमें हमारी फौज को मौका मिला रूस के तकनीकी हमलों (टेक्निकल वॉर) की बारीकियों को समझने का। साथ ही इससे रूस को भी हमारी युद्ध कौशल को नजदीक से देखने का मौका मिला।“
तो रूस के सैनिकों को भारतीय सेना के जमीनी जंग लड़ने का अनुभव प्राप्त हुआ। रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष ओझा ने पूरे 14 दिन की गतिविधयों की जानकारी देते हुए कहा,
“भारत और रूस की सेना का संयुक्त ऑपरेशन इंद्र जो 8 नवंबर को शुरु हुआ था 19 नवंबर को समाप्त हुआ। इस एक्सरसाइज में भारत और रूस के सैनिकों ने एक दूसरे की रणनीति, एक दूसरे के युद्ध कौशल,एक दूसरे के हथियार, साजो सामान को जाना, समझा। इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच आपसी समझ और बढ़ी। इन्होंने संयुक्त ऑपरेशन किए। संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देशों के तहत इस तरह का अभ्य़ास किया जाता है। खास बात ये है कि भविष्य में दोनों सेनाओं को साथ मिलकर किसी अभियान में काम करना पड़ेगा तो सफलतापूर्वक वो ऐसा कर सकेंगे। साथ ही दोनों ने एक दूसरे की संस्कृति को भी जाना। इसी दौरान दिवाली का त्योहार भी पड़ा। इसे रूस सैनिकों ने भी पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया। भारतीय सैनिकों के लिए रूसी सैनिकों ने एक विशेष कार्यक्रम रखा नृत्य और संगीत का जिसे भारतीय सैनिकों ने बहुत सराहा। साथ ही साथ रूसी सैनिकों ने योगाभ्यास भी किया। इस तरह करीब दो हफ्ते साथ रहने के दौरान व्यावसायिक ट्रेनिंग के साथ ही एक दूसरे के सांस्कृतिक गतिविधियों को जानने समझने का मौका भी दोनों देशों के सैनिकों को मिला। इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों ने एक दूसरे के हथियारों का जाना-समझा और उसका इस्तेमाल भी किया। दोनों सेनाओं ने इस बेहतरीन तजुर्बे को प्राप्त किया।“
वैसे यहा पहला मौका नहीं जब दोनों देशों के सैनिकों ने इस तरह के युद्धाभ्यास को अंजाम दिया हो। दोनों मित्र देशों के बीच इसकी शुरूआत 2005 में हुई थी। पहला अभ्यास आगरा में हुआ था। दोनों देशों की सेनाओं के बीच इस तरह का युद्धाभ्यास तीन बार रूस में भी हो चुका है। बीकानेर में संपन्न हुआ सातवां युद्धाभ्यास इसलिए ज्यादा चर्चे में रहा क्योंकि इसका आयोजन आतंकवाद के बढ़ते खतरे के दौरान हुआ और इसी पर केंद्रित रहा। आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए इस अभ्यास में दोनों सेनाओं ने संयुक्त योजना, घेराव, खोज अभियान,संयुक्त रणनीति,ड्रिल्स सहित कई और अभियानों में हिस्सा लिया। इस युद्धाभ्यास में महिला सैनिकों ने भी बढ़-चढ़कर अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। इस अभ्यास को बेहद जरूरी बताते हुए भारतीय थिंक टैंक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो और भारतीय सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहे प्रभाष कुमार मिश्रा कहते हैं,
“इस तरह का युद्धाभ्यास भारत के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि भारत के पास मौजूद करीब 70 फीसदी हथियार रूस में निर्मित है। हमारे बेड़े में मौजूद 60 फीसदी एयरक्राफ्ट रूस के बने हैं। हथियार की एक बहुत बड़ी मात्रा रूस निर्मित है। इसके साथ ही एके-47 राइफल के निर्माण में भी हम रूस की कंपनी के साथ भागीदारी सुनिश्चित करने वाले हैं। इस लिहाज से रूस और भारतीय सैनिकों के बीच हुआ यह युद्धाभ्यास बेहद अहम है। पाकिस्तान की सीमा पर स्थित बीकानेर,बाड़मेर और जैसलमेर जैसे मरूस्थली इलाकों में युद्धाभ्यास के दौरान कई चीजें सीखने को मिलती हैं। इसमें एक-दूसरे से हथिय़ारों के इस्तेमाल के साथ-साथ सैनिकों की तैनाती के गुर भी सीखे जाते हैं। इससे सैनिकों की तकनीकी क्षमता भी विकसित होती है। पेरिस में हुए हमले और इस्लामिक स्टेट के मंडराते खतरे के बीच यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि इसमें हमारी फौज को मौका मिला रूस के तकनीकी हमलों (टेक्निकल वॉर) की बारीकियों को समझने का। साथ ही इससे रूस को भी हमारी युद्ध कौशल को नजदीक से देखने का मौका मिला।“
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