रक्षा मंत्री श्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि भारत को यह उम्मीद है की कि दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में विवाद वाले सभी पक्ष दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचरण के बारे में 2002 की घोषणा का अनुपालन करेंगे और इसका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के साथ-साथ विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए साथ मिलकर कार्य करेंगे।
आज क्वालालमपुर में आयोजित तीसरी आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (एडीएमएम-प्लस) को संबोधित करते हुए श्री पर्रिकर ने कहा कि दक्षिण चीन सागर की स्थिति और हाल की घटनाओं ने इस ओर ध्यान और हमारी चिंता को आकर्षित किया है। यह स्वाभाविक है क्योंकि समुद्र के कानून पर 1982 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार संसाधनों के उपयोग के अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा में नौवहन की स्वतंत्रता, मार्ग और ओवरफ्लाइट का अधिकार, बेरोकटोक व्यापार और संसाधनों तक पहुंच हम सब के लिए चिंता के विषय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि दक्षिण चीन सागर के बारे में आम सहमति से आचारसंहिता का जल्द ही निष्कर्ष निकाल लिया जाएगा।
रक्षा मंत्री के संबोधन का पूरा पाठ इस प्रकार है- एडीएमएम-प्लस की तीसरी बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए मैं गौरान्वित महसूस कर रहा हूं। कल हमारे आने के बाद से ही हमें जो उत्कृष्ट आतिथ्य सत्कार दिया जा रहा है उसके लिए हम मलेशिया के आभारी है। मलेशिया ने इस बैठक के आयोजन के लिए बहुत अच्छे इंतजाम किए हैं, जिनके लिए मैं मेजबान देश को धन्यवाद देना चाहता हूं।
एडीएमएम-प्लस की 2010 में स्थापना हुई थी। इस छोटी सी अवधि में ही यह अपने क्षेत्र के रक्षा मंत्रालयों के अधिकारियों के दरमियान सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए एक सटीक और लाभदायक मंच के रूप में उभरा है। एडीएमएम-प्लस के तत्वाधान में आयोजित हमारी मंत्री स्तर की बैठकें और अन्य गतिविधियां इस क्षेत्र में भरोसा और आत्मविश्वास पैदा करने के लिए भारी योगदान कर रही हैं।
आसियान के लिए 2015 एक महत्वपूर्ण वर्ष है। हम महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए आसियान को बधाई देते हैं और ये शुभकामनाएं भी देते हैं कि आसियान समुदाय को बड़ी सफलता प्राप्त हो। वर्ष 2015 पूर्वी एशिया सम्मेलन की दसवीं जयंती भी है, जिसकी सदस्यता हमारी तरह ही है।
आसियान भारत की ‘एक्ट ईस्ट पोलिसी’ का मुख्य अंग है और एशियाई सदी के हमारे सपने का केन्द्र बिन्दु है। पड़ोसियों के रूप में और सभी देशों के इसी क्षेत्र से संबंधित होने के कारण भारत और आसियान सदस्य देशों के सामने परम्परागत और गैर-परम्परागत दोनों प्रकार की एक जैसी ही सुरक्षा चुनौतियां हैं। हमारी सब की सर्वोच्च प्राथमिकता विकास और अपनी जनता के जीवन में बदलाव लाना है। एक शांतिपूर्ण, स्थायी, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत यहां प्रतिनिधित्व कर रहे सभी देशों के साथ द्विपक्षीय और बहु-पक्षीय रूप से कार्य कर रहा है ताकि हिन्द महासागर से प्रशांत महासागर तक के क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सके। हमारे प्रयासों में नौवहन सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, परिप्रेक्ष्य आदान-प्रदान और आतंकवाद का मुकाबला करने में सहयोग और सुरक्षा सहयोग के लिए आसियान नेतृत्व वाली पहलों जैसे क्षेत्रों में आपदा मोचन, मानवीय सहायता, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
आसियान ने पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय, सुरक्षा, निर्माण के बारे में लाभदायक और रचनात्मक वार्ताओं का नेतृत्व किया है। भारत ने इस वर्ष जुलाई में कम्बोडिया के साथ मिलकर क्षेत्रीय सुरक्षा स्थापत्य पर चौथी कार्यशाला का आयोजन किया। हम इंडोनेशिया, थाइलैंड, चीन, रूस, जापान और अन्य देशों द्वारा प्रस्तुत किए गए लाभदायक और रचनात्मक विचारों का स्वागत करते हैं और हम आम मूल्यांकनों को भी साझा करते हैं जिससे भविष्य का ढांचा उभरते स्थापत्य में आसियान को केन्द्रीय रूप से मजबूत करने के लिए सामरिक मुद्दों पर वार्ता हेतु एक प्रमुख नेतृत्व मंच के रूप में 18 सदस्यीय ईएएस पर केन्द्रित हो सके। भारत ईएएस और एडीएमएम-प्लस में नजदीकी संबंध देखना चाहता है।
एडीएमएम-प्लस में कार्य करने के लिए हमने सहयोग के पांच क्षेत्रों की पहचान की है, जिनके नाम है- एचएडीआर, समुद्री सुरक्षा, सैन्य चिकित्सा, आतंकवाद का मुकाबला और शांति स्थापना के परिचालन। इन क्षेत्रों में विशेषज्ञ कार्य समूहों (ईडब्ल्यूजी) की कार्यप्रणाली के माध्यम से काफी प्रगति हुई है। भारत को पिछले वर्ष मानवीय खनन कार्यवाही के क्षेत्र में ईडब्ल्यूजी पर वियतनाम में सह-अध्यक्ष होने का सम्मान प्राप्त हुआ था। भारत मार्च, 2016 में संयुक्त मानवीय खनन कार्यवाही और संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना कार्यवाही फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास में एडीएमएम-प्लस विशेषज्ञों की मेजबानी करने का इच्छुक है। हमें 2014-17 चक्र से आगे सहयोग और वार्ता के भविष्य के क्षेत्रों के बारे में सोचना चाहिए। इस संबंध में मेरा प्रस्ताव है कि राष्ट्रीय अनुभवों के आदान-प्रदान के क्षेत्र के रूप में हमें भूतपूर्व सैनिकों और दिग्गजों के कल्याण के बारे में ध्यान देना चाहिए।
हम सभी आतंकवाद और कट्टरपंथ के लगातार खतरे से चिंतित है। आतंकवाद के कृत्यों का कोई औचित्य नहीं हो सकता है और हमें आतंकवादियों की भर्ती, धन व्यवस्था और हथियारों की आपूर्ति को पूरी तरह रोकने के लिए कार्य करना है। हम नरमपंथियों की वैश्विक गतिविधियां बढ़ाने के लिए और कट्टरता का मुकाबला करने के प्रयासों के लिए मलेशिया की पहल की सराहना करते हैं।
समुद्री सुरक्षा फिर से एक आम चुनौती बन गई है। हमारे क्षेत्र में समुद्र और महासागर हमारी समृद्धि के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। दक्षिण चीन सागर और हाल की घटनाओं से उत्पन्न स्थिति ने हमारी चिंताओं और हितों के बारे में हमारा ध्यान आकर्षित किया है। यह स्वाभाविक है क्योंकि समुद्र के कानून पर 1982 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार संसाधनों के उपयोग के अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा में नौवहन की स्वतंत्रता, मार्ग और ओवरफ्लाइट का अधिकार, बेरोकटोक व्यापार और संसाधनों तक पहुंच हम सब के लिए चिंता के विषय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि दक्षिण चीन सागर के बारे में आम सहमति से आचारसंहिता का जल्द ही निष्कर्ष निकाल लिया जाएगा। भारत को यह उम्मीद है कि दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में विवाद वाले सभी पक्ष दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचरण के बारे में 2002 की घोषणा का अनुपालन करेंगे और इसका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के साथ-साथ विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए साथ मिलकर कार्य करेंगे। हमारी यह भी उम्मीद है कि भारत दक्षिण चीन सागर में आम सहमति से आचारसंहिता का जल्दी निष्कर्ष निकल जाएगा।
मैं आप को, अध्यक्ष महोदय तथा एडीएमएम-प्लस के अपने सभी सहयोगियों को इस मंच में निर्धारित किए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपने पूरे सहयोग का आश्वासन देता हूं। हम सभी मलेशिया द्वारा शीघ्र ही आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों के लिए उसे शुभकामनाएं देते हैं।
ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।
आज क्वालालमपुर में आयोजित तीसरी आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (एडीएमएम-प्लस) को संबोधित करते हुए श्री पर्रिकर ने कहा कि दक्षिण चीन सागर की स्थिति और हाल की घटनाओं ने इस ओर ध्यान और हमारी चिंता को आकर्षित किया है। यह स्वाभाविक है क्योंकि समुद्र के कानून पर 1982 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार संसाधनों के उपयोग के अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा में नौवहन की स्वतंत्रता, मार्ग और ओवरफ्लाइट का अधिकार, बेरोकटोक व्यापार और संसाधनों तक पहुंच हम सब के लिए चिंता के विषय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि दक्षिण चीन सागर के बारे में आम सहमति से आचारसंहिता का जल्द ही निष्कर्ष निकाल लिया जाएगा।
रक्षा मंत्री के संबोधन का पूरा पाठ इस प्रकार है- एडीएमएम-प्लस की तीसरी बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए मैं गौरान्वित महसूस कर रहा हूं। कल हमारे आने के बाद से ही हमें जो उत्कृष्ट आतिथ्य सत्कार दिया जा रहा है उसके लिए हम मलेशिया के आभारी है। मलेशिया ने इस बैठक के आयोजन के लिए बहुत अच्छे इंतजाम किए हैं, जिनके लिए मैं मेजबान देश को धन्यवाद देना चाहता हूं।
एडीएमएम-प्लस की 2010 में स्थापना हुई थी। इस छोटी सी अवधि में ही यह अपने क्षेत्र के रक्षा मंत्रालयों के अधिकारियों के दरमियान सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए एक सटीक और लाभदायक मंच के रूप में उभरा है। एडीएमएम-प्लस के तत्वाधान में आयोजित हमारी मंत्री स्तर की बैठकें और अन्य गतिविधियां इस क्षेत्र में भरोसा और आत्मविश्वास पैदा करने के लिए भारी योगदान कर रही हैं।
आसियान के लिए 2015 एक महत्वपूर्ण वर्ष है। हम महत्वपूर्ण उपलब्धियों के लिए आसियान को बधाई देते हैं और ये शुभकामनाएं भी देते हैं कि आसियान समुदाय को बड़ी सफलता प्राप्त हो। वर्ष 2015 पूर्वी एशिया सम्मेलन की दसवीं जयंती भी है, जिसकी सदस्यता हमारी तरह ही है।
आसियान भारत की ‘एक्ट ईस्ट पोलिसी’ का मुख्य अंग है और एशियाई सदी के हमारे सपने का केन्द्र बिन्दु है। पड़ोसियों के रूप में और सभी देशों के इसी क्षेत्र से संबंधित होने के कारण भारत और आसियान सदस्य देशों के सामने परम्परागत और गैर-परम्परागत दोनों प्रकार की एक जैसी ही सुरक्षा चुनौतियां हैं। हमारी सब की सर्वोच्च प्राथमिकता विकास और अपनी जनता के जीवन में बदलाव लाना है। एक शांतिपूर्ण, स्थायी, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
भारत यहां प्रतिनिधित्व कर रहे सभी देशों के साथ द्विपक्षीय और बहु-पक्षीय रूप से कार्य कर रहा है ताकि हिन्द महासागर से प्रशांत महासागर तक के क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा दिया जा सके। हमारे प्रयासों में नौवहन सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, परिप्रेक्ष्य आदान-प्रदान और आतंकवाद का मुकाबला करने में सहयोग और सुरक्षा सहयोग के लिए आसियान नेतृत्व वाली पहलों जैसे क्षेत्रों में आपदा मोचन, मानवीय सहायता, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल हैं।
आसियान ने पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय, सुरक्षा, निर्माण के बारे में लाभदायक और रचनात्मक वार्ताओं का नेतृत्व किया है। भारत ने इस वर्ष जुलाई में कम्बोडिया के साथ मिलकर क्षेत्रीय सुरक्षा स्थापत्य पर चौथी कार्यशाला का आयोजन किया। हम इंडोनेशिया, थाइलैंड, चीन, रूस, जापान और अन्य देशों द्वारा प्रस्तुत किए गए लाभदायक और रचनात्मक विचारों का स्वागत करते हैं और हम आम मूल्यांकनों को भी साझा करते हैं जिससे भविष्य का ढांचा उभरते स्थापत्य में आसियान को केन्द्रीय रूप से मजबूत करने के लिए सामरिक मुद्दों पर वार्ता हेतु एक प्रमुख नेतृत्व मंच के रूप में 18 सदस्यीय ईएएस पर केन्द्रित हो सके। भारत ईएएस और एडीएमएम-प्लस में नजदीकी संबंध देखना चाहता है।
एडीएमएम-प्लस में कार्य करने के लिए हमने सहयोग के पांच क्षेत्रों की पहचान की है, जिनके नाम है- एचएडीआर, समुद्री सुरक्षा, सैन्य चिकित्सा, आतंकवाद का मुकाबला और शांति स्थापना के परिचालन। इन क्षेत्रों में विशेषज्ञ कार्य समूहों (ईडब्ल्यूजी) की कार्यप्रणाली के माध्यम से काफी प्रगति हुई है। भारत को पिछले वर्ष मानवीय खनन कार्यवाही के क्षेत्र में ईडब्ल्यूजी पर वियतनाम में सह-अध्यक्ष होने का सम्मान प्राप्त हुआ था। भारत मार्च, 2016 में संयुक्त मानवीय खनन कार्यवाही और संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना कार्यवाही फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास में एडीएमएम-प्लस विशेषज्ञों की मेजबानी करने का इच्छुक है। हमें 2014-17 चक्र से आगे सहयोग और वार्ता के भविष्य के क्षेत्रों के बारे में सोचना चाहिए। इस संबंध में मेरा प्रस्ताव है कि राष्ट्रीय अनुभवों के आदान-प्रदान के क्षेत्र के रूप में हमें भूतपूर्व सैनिकों और दिग्गजों के कल्याण के बारे में ध्यान देना चाहिए।
हम सभी आतंकवाद और कट्टरपंथ के लगातार खतरे से चिंतित है। आतंकवाद के कृत्यों का कोई औचित्य नहीं हो सकता है और हमें आतंकवादियों की भर्ती, धन व्यवस्था और हथियारों की आपूर्ति को पूरी तरह रोकने के लिए कार्य करना है। हम नरमपंथियों की वैश्विक गतिविधियां बढ़ाने के लिए और कट्टरता का मुकाबला करने के प्रयासों के लिए मलेशिया की पहल की सराहना करते हैं।
समुद्री सुरक्षा फिर से एक आम चुनौती बन गई है। हमारे क्षेत्र में समुद्र और महासागर हमारी समृद्धि के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। दक्षिण चीन सागर और हाल की घटनाओं से उत्पन्न स्थिति ने हमारी चिंताओं और हितों के बारे में हमारा ध्यान आकर्षित किया है। यह स्वाभाविक है क्योंकि समुद्र के कानून पर 1982 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुसार संसाधनों के उपयोग के अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय जल सीमा में नौवहन की स्वतंत्रता, मार्ग और ओवरफ्लाइट का अधिकार, बेरोकटोक व्यापार और संसाधनों तक पहुंच हम सब के लिए चिंता के विषय हैं। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि दक्षिण चीन सागर के बारे में आम सहमति से आचारसंहिता का जल्द ही निष्कर्ष निकाल लिया जाएगा। भारत को यह उम्मीद है कि दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में विवाद वाले सभी पक्ष दक्षिण चीन सागर में पक्षों के आचरण के बारे में 2002 की घोषणा का अनुपालन करेंगे और इसका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के साथ-साथ विवादों का शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए साथ मिलकर कार्य करेंगे। हमारी यह भी उम्मीद है कि भारत दक्षिण चीन सागर में आम सहमति से आचारसंहिता का जल्दी निष्कर्ष निकल जाएगा।
मैं आप को, अध्यक्ष महोदय तथा एडीएमएम-प्लस के अपने सभी सहयोगियों को इस मंच में निर्धारित किए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपने पूरे सहयोग का आश्वासन देता हूं। हम सभी मलेशिया द्वारा शीघ्र ही आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों के लिए उसे शुभकामनाएं देते हैं।
ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं।
[PIB]
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